02 June 2007

सिलसिला जवाबों का

किसी ने एक ख़्वाब देखा,
किसी ने इसे साकार किया,
वक़्त का लम्बा दौर तय हुआ,
लोग जुड़ते गए दिन ब दिन ,
सवालों का सिलसिला शुरू हुआ
नेट पर ,
जवाबों को उन तक
पहुंचाया गया,
सिलसिलेवार फ़हरिस्त बनी,
और एक दिन
रूप लिया इसने
किताबों का
क़तरा-क़तरा...

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