कभी अजनबी सी,
कभी जानी पहचानी सी,
जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा...
18 June 2007
दो पहलू
कुछ दर्द सांझे होते हैं, कुछ खुशियाँ सांझी होती हैं, और ये सांझेपन ही दो पहलू हैं सिक्के की तरह। एक का दर्द दूसरे मै झलकना, एक की खुशी दूसरे मै झलकना स्वाभाविक हैं वहां। जैसे दो जान एक रूह जैसे नदी के दो किनारे आमने सामने अलग अलग...
1 comment:
दर्द सांझे नही होते ये भ्रम हे
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