22 June 2007

बादल


मेरा आकाश
कहीँ और चला गया,
आज किसी ने
मेरे बादलों में सैर की।

पर बादल तो
सबके होते हैं;
सबकी छत पर,
कौन पहचानता हैं इन्हें,
कौन संजोता हैं इनको।


मैंने संजोया था
एक बादल,
किसी ने सजाया हैं
उसे अपनी छत पर
आज।

शुक्रिया...

2 comments:

Rachna Singh said...
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Udan Tashtari said...

वाह!! क्या खूब सोच है-सुंदर भाव!!