मेरा आकाश
कहीँ और चला गया,
आज किसी ने
मेरे बादलों में सैर की।
मेरे बादलों में सैर की।
पर बादल तो
सबके होते हैं;
सबके होते हैं;
सबकी छत पर,
कौन पहचानता हैं इन्हें,
कौन संजोता हैं इनको।
मैंने संजोया था
एक बादल,
एक बादल,
किसी ने सजाया हैं
उसे अपनी छत पर
आज।
आज।
शुक्रिया...
2 comments:
वाह!! क्या खूब सोच है-सुंदर भाव!!
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