12 August 2007

निशब्द

आज मै अकेला मिला
अपने आप से
मुद्दतो बाद,
कोई नही था
बस मेरी पुरानी
चीजें थी साथ,
जिन्हें मै रोज़
नज़रान्दाज़
करता था।
रौशनदान से झांकती
कोमल धूप,
वो कूलर नहीं था आज
जो जोर-जोर से
खर्राटे लेता था
खुदा को प्यारा हो गया
उसका पोता AC हैं आज,
TV पर आज मैंने
पावंदी लगादी थी
और बैठ गया
शांत कमरे में
एक एक कर
अलारी में सजी
अपनी अमानतों को
देखने लगा।
खड़ी किताबों के ऊपर
शब्दों के पोरुओ को
महसूस करने लगा
कि एक-एक कर
सब बोलने लगी
और मुझे
खीच ले गयी
अपनी ही दुनिया में
जहाँ ना कोई
बनावट थी,
ना कोई सजावट,
सब कच्चे-कच्चे
एहसासों की ज़मीन थी
जहाँ बहुत कुछ पक रहा था,
मै खड़ा था वहां स्तब्ध
बिल्कुल निशब्द...

7 comments:

Reetesh Gupta said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....बधाई

vikas choudhry said...

just too good

Udan Tashtari said...

न जाने क्यूँ अतीत हमेशा ही ऐसा अहसास देता है. कुछ बरसों बाद आज पर लौटेंगे, तब भी कुछ यूँ ही अहसास छू जायेंगे. बस, यही तो है जिन्दगी. अहसासों का सुन्दर शब्द चित्र बनाया है. बधाई.

Sharma ,Amit said...

Superb Sir

ghughutibasuti said...

बहुत ही सुन्दर अहसासों से भरी जीवंत कविता !
घुघूती बासूती

Manish Kumar said...

वाह! सुंदर अभिव्यक्ति यतीश भाई!

मीनाक्षी said...

एहसासों की ज़मीन थी
जहाँ बहुत कुछ पक रहा था,
मै खड़ा था वहां स्तब्ध
बिल्कुल निशब्द...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .