आज मै अकेला मिला
अपने आप से
मुद्दतो बाद,
कोई नही था
बस मेरी पुरानी
चीजें थी साथ,
जिन्हें मै रोज़
नज़रान्दाज़ करता था।
रौशनदान से झांकती
कोमल धूप,
वो कूलर नहीं था आज
जो जोर-जोर से
खर्राटे लेता था
खुदा को प्यारा हो गया
उसका पोता AC हैं आज,
TV पर आज मैंने
पावंदी लगादी थी
और बैठ गया
शांत कमरे में
एक एक कर
अलारी में सजी
अपनी अमानतों को
देखने लगा।
खड़ी किताबों के ऊपर
शब्दों के पोरुओ को
महसूस करने लगा
कि एक-एक कर
सब बोलने लगी
और मुझे
खीच ले गयी
अपनी ही दुनिया में
जहाँ ना कोई
बनावट थी,
ना कोई सजावट,
सब कच्चे-कच्चे
एहसासों की ज़मीन थी
जहाँ बहुत कुछ पक रहा था,
मै खड़ा था वहां स्तब्ध
बिल्कुल निशब्द...
7 comments:
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....बधाई
just too good
न जाने क्यूँ अतीत हमेशा ही ऐसा अहसास देता है. कुछ बरसों बाद आज पर लौटेंगे, तब भी कुछ यूँ ही अहसास छू जायेंगे. बस, यही तो है जिन्दगी. अहसासों का सुन्दर शब्द चित्र बनाया है. बधाई.
Superb Sir
बहुत ही सुन्दर अहसासों से भरी जीवंत कविता !
घुघूती बासूती
वाह! सुंदर अभिव्यक्ति यतीश भाई!
एहसासों की ज़मीन थी
जहाँ बहुत कुछ पक रहा था,
मै खड़ा था वहां स्तब्ध
बिल्कुल निशब्द...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .
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