शांती ढूढता हैं हर कोई
हर समाज, मज़हब, देश
ये सारी कायनात,
बंधे हुये हैं
स्वतंत्र नही कर पाते
अपने आप को।
हम सब बटे हुये हैं
ज़मीन के
किसी टुकडे की तरह
और ज़मीन की छाती
छलनी हैं
लकीरों से।
कोई भी लकीर हिलती हैं
तो संगीने खिच जाती हैं
आतिशबाजियां होती हैं
अशान्ती और बड़ जाती हैं।
कहाँ मिलेगी शांती
पता नही,
पता हैं तो बस इतना,
अपने आप में हैं ये,
और इसे ढूढ़ना हैं मुश्किल।
ये जितनी पास आती हैं हमारे
हम उतना दूर होते जाते हैं
रोज़ इससे
क़तरा-क़तरा
7 comments:
यतीश,
शान्ति हर इंसान के भीतर ही है
वोह उसे बिना वजह बाहर खोज रहा है
उसके लिए भीतर नजर फिरा कर
साधना की आवश्यकता है
और बिना अभ्य्यास के साधना नहीं होती
अगर आप शान्ति को खोज में निकले हैं
तो बाहर धक्के ही खायेंगे
जरा भीतर दूब्की लगाने की जरुरत है
उमेश बत्रा
अगर आप को शांती नही मिलती तो थानें मे रिपोर्ट लिखवाओ:(
Aaj hamein pata chala ke Tumhari Us ka naam Shanti Hai...
Gumshuda ki talash mein...
बिल्कुल सही...जब हम संसार से ऊबनें लगते हैं ..तो हमें शाती की तलाश..मे निकलना ही पडता है...और यह प्रश्न सामने ख्द़्आ हो जाता है-
कहाँ मिलेगी शांती
पता नही,
पता हैं तो बस इतना,
अपने आप में हैं ये,
और इसे ढूढ़ना हैं मुश्किल।
कविता अच्छी लगी ।
घुघूती बासूती
बढ़िया है. सारा जग इसी तलाश में है. अच्छा शब्दों में बाँधा है.
World Of Warcraft gold for cheap
wow power leveling,
wow gold,
wow gold,
wow power leveling,
wow power leveling,
world of warcraft power leveling,
world of warcraft power leveling
wow power leveling,
cheap wow gold,
cheap wow gold,
buy wow gold,
wow gold,
Cheap WoW Gold,
wow gold,
Cheap WoW Gold,
world of warcraft gold,
wow gold,
world of warcraft gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold
buy cheap World Of Warcraft gold b3h6o7cb
Post a Comment