01 September 2007

come-ant कम-आन्ट

प्रोत्साहन ही
लिखने वाले का
ईधन होता है.
कुछ लोग कहते है
हम अपनी खुशी के लिए
लिखते है,
कोई पढे या न पढे
मैं नही मानता.

यहाँ
इन चिट्ठों पे
कुछ भी तो अपना नही है,
कुछ लोगो से लिया
कुछ अपना मिलाया
कुछ ज़िंदगी ने सिखाया
जो बिखर गया यही पे
कही लेख बनके
सिमट गयी कही पे
कविता बनके.

फिर क्यों न हम
ज्यादा में बटे
एक होके
क्यों न एक हो जाए
सब मिलके

फिर हमारी भी तुम्हारी
तुम्हारी भी हमारी

बस एक कोना अधिकार का ज़रुर हो
जिससे अपनी सी खुशबू आती रहे
फिर सब इकठ्ठा होंगे चीटियों की तरह
रोज़ होगी दावत विचारों की
और मैं
हटा दूंगा
comments की तख्ती
लिख दूंगा
come-ant
इंतजार नही करुंगा
क़तरा-क़तरा

6 comments:

SURJEET said...

You are right Yatish, comments somewhere down the line boost the moral of a blogger and/or a writer. Throught commnents only we will get a stock of how people react to our feelings.

Unknown said...

sahi hai re bhai...
I like the Come Ant quip.
vaise bhi tu itna meetha likhta hai ki chini tak ko ghulaam banade.
Bahut dino se tere satire or humor ka koyi piece nahi padha...
thode se post kar na re.

Sajeev said...

बस एक कोना अधिकार का ज़रुर हो
जिससे अपनी सी खुशबू आती रहे
फिर सब इकठ्ठा होंगे चीटियों की तरह
रोज़ होगी दावत विचारों की
और मैं
हटा दूंगा
comments की तख्ती
लिख दूंगा
come-ant
इंतजार नही करुंगा
क़तरा-क़तरा
वह यातिश जी पंकज उदास की एक ग़ज़ल याद हो आई-
एक ऐसा घर चाहिए मुझको जिसकी फिजा मस्ताना हो,
एक कोने में ग़ज़ल की महफ़िल एक कोने मे मैखाना हो.
बहुत अच्छे , युग्म पर आपको देख कर अच्छा लगा, एक कवि होने के नाते कविता और हिन्दी भाषा को प्रोसाहित करने की कोशिश करता हिंद युग्म आपको निरंतर देखना चाहता है

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छा लिखा है।

यहाँ
इन चिट्ठों पे
कुछ भी तो अपना नही है,
कुछ लोगो से लिया
कुछ अपना मिलाया
कुछ ज़िंदगी ने सिखाया
जो बिखर गया यही पे
कही लेख बनके
सिमट गयी कही पे
कविता बनके.

Udan Tashtari said...

सच तो है.

बिना ईधन के गाड़ी कितनी देर चल सकती है.

हमारा तो खैर ईंधन सप्लाई का होल सेल का काम है. नये डिस्ट्रीब्यूटर भी नियुक्त करना है.

सुनीता शानू said...

बहुत खूब यतिश जी आप सही कह रहे है...

प्रोत्साहन ही
लिखने वाले का
ईधन होता है.

शानू