माँ ने बचपन में
एक छोटी सी डायरी दी थी
जब मैं पाँचवी मे था,
स्कूल का पहला टूर था,
कहा था
इसमे लिखना
जो भी तुम देखो.
कुछ बिखरे हुए शब्दों में
टूटी हुई लाइने दर्ज़ हुई थी,
उस छोटी सी डायरी में.
वक़्त के साथ वो लाइने
संभल गयी है,
ज़िम्मेदार हो गयी है.
उसी प्रथा को आगे बढ़ाते
एक पन्ना
मैंने भी दिया
आगे की पीढी को.
आज कुछ पका है उसपे
बहुत अच्छा रंग आया है
बहुत अच्छी खुशबू है और
जायका भी अच्छा है.
आज पहला अंकुर फूटा है
दुआ करता हूँ
कुछ और भी खिलेगा
वक़्त की साखों पे
क़तरा-क़तरा
http://gunish.blogspot.com
5 comments:
जरुर खिलेगा...हमारी भी शुभकामनाऐं.
जरूर खिलेगा ....हमारी सदभावनायें आपके साथ हैं....बधाई
Congratulations! you started in class 5, good thing, he gets a start in class 2 itself...
पास्ता खाने को तो नहीं मिल पाया, पर खुशबू अच्छी है और रंग भी अच्छा आया है.
बधाई!
bahut khuub....
honhar birvaan kae hote chikane paat
Post a Comment