02 September 2007

अंकुर

माँ ने बचपन में
एक छोटी सी डायरी दी थी
जब मैं पाँचवी मे था,
स्कूल का पहला टूर था,
कहा था
इसमे लिखना
जो भी तुम देखो.

कुछ बिखरे हुए शब्दों में
टूटी हुई लाइने दर्ज़ हुई थी,
उस छोटी सी डायरी में.
वक़्त के साथ वो लाइने
संभल गयी है,
ज़िम्मेदार हो गयी है.

उसी प्रथा को आगे बढ़ाते
एक पन्ना
मैंने भी दिया
आगे की पीढी को.

आज कुछ पका है उसपे
बहुत अच्छा रंग आया है
बहुत अच्छी खुशबू है और
जायका भी अच्छा है.

आज पहला अंकुर फूटा है
दुआ करता हूँ
कुछ और भी खिलेगा
वक़्त की साखों पे
क़तरा-क़तरा
http://gunish.blogspot.com

5 comments:

Udan Tashtari said...

जरुर खिलेगा...हमारी भी शुभकामनाऐं.

Reetesh Gupta said...

जरूर खिलेगा ....हमारी सदभावनायें आपके साथ हैं....बधाई

Anonymous said...

Congratulations! you started in class 5, good thing, he gets a start in class 2 itself...

पास्ता खाने को तो नहीं मिल पाया, पर खुशबू अच्छी है और रंग भी अच्छा आया है.

बधाई!

पारुल "पुखराज" said...

bahut khuub....

Anonymous said...

honhar birvaan kae hote chikane paat