गुरू ने शिक्षा दी और मिशाल बनाई,
की गुरू तभी गुरू होता है
जब शिष्य उससे आगे निकल जाये,
कुछ उससे बड़ा कर दिखाये.
पर आज
कहाँ है ऐसे द्रौण
कहाँ है ऐसे अर्जुन
कहाँ है ऎसी कोख
जिनसे ये पैदा हो सके.
शिक्षा अब बाज़ार मे
बिकने वाली चीज हो गयी है,
काबिलियत
कागज़ पे लगा एक ठप्पा,
गले मे लटकता एक तमगा.
दुकाने सजी है गुरुओ की,
अब शिष्यों की भी.
गुरू अब गुरू नही पेड सर्वेंट हो गया है
शिष्य उसे जब चाहे बदलता है.
शिष्य अब शिष्य नही
भेदो के झुंड है,
जहाँ गुरुओं की संस्थाएं उन्हें चुनती है.
गुरू में गुरूर है अब
शिष्य में क्या शेष है अब
पता नही
शिक्षा अब उस भिक्षा की तरह है
जिसे कोई भी ले दे सकता है
पर इसमे कितनी सुशिक्षा है
सब जानते है.
सब कुछ बदल गया है
पर ये सच है
द्रौण और अर्जुन नही रहे
पर ये भी सच है
आज भी पैदा होते है
ऐसे लोग
जो बनते है अपने बुते पे,
सामने आदर्श का बुत रखके,
हां एकलव्य आज भी पैदा होते है
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6 comments:
सच कहा आपने. बहुत सारे गरीब विद्यार्थियो को मेहगे साधन नही मिलपाते, वो बाहर मह्गे कोर्स नही करपाते पर अपने बल पर पढते है और एक नया इतिहास बनाते है.
गुरू अब गुरू नही पेड सर्वेंट हो गया है
शिष्य उसे जब चाहे बदलता है.
शिष्य अब शिष्य नही
भेदो के झुंड है,
जहाँ गुरुओं की संस्थाएं उन्हें चुनती है.
बात में दम है यतिश जी बहुत सुन्दर रचना...
सुनीता(शानू)
बहुत सुन्दर-
सत्य है-एकलव्य आज भी पैदा होते है..और हमेशा होते रहेंगे.
मिशाल=मिसाल
बधाई
वास्तविकता को उजागर करने वाली, मन को झकझोर देने वाली, विश्लेषण से भरी कविता. आज के शिक्षक समाज के समक्ष कई महत्वपूर्ण प्रश्न रखती है -- शास्त्री
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
जहाँ गुरू बिकता है
और शिष्य खरीदता है
ऐसे में
अर्जुन और द्रौण
फिरते हैं मारे -मारे व रोते-रोते
फिर भी उभरते हैं
अपने ही बलबूते पर
आज के दौर में
जो देगा जितनी ज़्यादा भिक्षा
वह पायेगा उतनी उच्च शिक्षा
कहाँ है ऐसे द्रौण
कहाँ है ऐसे अर्जुन
कहाँ है ऎसी कोख
जिनसे ये पैदा हो सके.
बहुत सराहनीय कविता
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