एक सपना देखा था
आज वो पूरा हुआ
पर
वो सपना अपना नही रहा,
जब हक़ीकत ने उसे छुआ
तो मुआ मुझे ही छोड गया
आज जब खुलती हैं
शम्पैन उसकी हर कामयाबी पे
थोडा दर्द देती हैं
पर खुश भी बहुत
हो लेता हूँ ये देख कि
जो बीज बोया था
वो आज कितनों को
छाया दे रहा
जो आग सुलगाई थी
सर्द रातों में
आज सेकती हैं कईयों को
पर ठिठुरता रहता हूँ मै ,
अकेला घूमता हूँ
इस भरी भीड़ में,
तनहाइयां समेटता हूँ
इस शोर में.
साथ चलना सबके
दूभर हो चला हैं
विश्वाश का साथ अब
दूर हो चला हैं
मै मेरे साथ रहूँ
अब यही दुआ करता हूँ
क्यों कि
मुझमें मै हूँ
तो मै हुआ करता हूँ
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: कविता, अकेला, मै, साथ, विश्वाश, दुआ, ख़ुशी, दर्द, तनहा, अकेला, भीड़, yatish, yatishjain, hindi, hindi-poem, क़तरा-क़तरा, Qatra-Qatra,
4 comments:
मै मेरे साथ रहूँ
अब यही दुआ करता हूँ
क्यों कि
मुझमें मै हूँ
तो मै हुआ करता हूँ
--बहुत सही फलसफा.
सपना हो गया सपना पढकर
ग़ालिब की कुछ कही हुई पंक्तिया याद आती है
ना था कुछ तो खुदा था
कुछ ना होता तो खुदा होता
मिटाया मुझको होने ने
ना होता तो क्या होता
अर्से पहले
एक सपना देखा था
आज वो पूरा हुआ
पर
वो सपना अपना नही रहा,
जब हक़ीकत ने उसे छुआ
तो मुआ मुझे ही छोड गया
आज जब खुलती हैं
शम्पैन उसकी हर कामयाबी पे
थोडा दर्द देती हैं
पर खुश भी बहुत
हो लेता हूँ ये देख कि
जो बीज बोया था
वो आज कितनों को
छाया दे रहा
वाह बहुत ख़ूब यातिश जी पर कविता की इतनी अच्छी शुरुआत होने के बावजूद अन्त मुझे छू नही पाया या शायद समझ नही पाया
"पर खुश भी बहुत
हो लेता हूँ ये देख कि
जो बीज बोया था
वो आज कितनों को
छाया दे रहा "
यतीश, आप जैसे व्यक्ति को, जिसने अपने लेखन को क्रियेटिव कॉमन्स में दे दिया है, ये पंक्तियां दुहराने के कई अवसर आयेंगे -- शास्त्री
हे प्रभु, मुझे अपने दिव्य ज्ञान से भर दीजिये
जिससे मेरा हर कदम दूसरों के लिये अनुग्रह का कारण हो,
हर शब्द दुखी को सांत्वना एवं रचनाकर्मी को प्रेरणा दे,
हर पल मुझे यह लगे की मैं आपके और अधिक निकट
होता जा रहा हूं.
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