जब ख़त्म हो रहा था
तो सूरज ने एक साजिश की
एक किरण को भेज दिया
आखरी पहर ही देहलीज पे
रात भी बड़ी चालक
उसने न खोले अपने द्वार
सपना संजोये ही चली गयी
थाम लिया वक़्त को
अपनी बंद आखों मे
जब आँख खुली
तो चौधिया गयी
सब कुछ उजड़ चुका था
सिर्फ़ कहने को
एक नाम बाकी था
दिन के सीने पे
जल रहा था
रात की राख लिए.
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5 comments:
सुंदर सा सपना रहा होगा ......
सिर्फ़ कहने को
एक नाम बाकी था
दिन के सीने पे
जल रहा था
रात की राख लिए.
बहुत बढिया!
सपने
पुरे हो जायें तो अपने
नहीं तो सपने
सपने तो बस सपने होते हैं........
Dream sweet dream! The last stanza of this poem is amazing. Now I don't think I am left with words to appreciate you Mr. Jain.
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