27 July 2007

ईमेल

आज मेरे ईमेल की देहलीज़ पे
एक मेल ने दस्तक दीं,
किसी ने मेरे घर के नाम से पुकारा।
जैसे ही मेल में
मै आगे बड़ा,
ख़त्म हो गयी एक लाइन में।
खैरियत पूछी थी बरसों बाद मेरी,
घरवालों की।
सालों का फासला
सेकेंड में ख़त्म हो गया,
जैसे कोई बासी पोस्ट पे
कमेंट्स लिख गया।

4 comments:

सुनीता शानू said...

क्या बात है यतिश जी इतनी निराशा क्यों आप सभी विद्या जानते है किसी पर भी कविता बना देते है…

सुनीता(शानू)

Yatish Jain said...

शानू जी,
ज़िंदगी एक कविता ही तो हैं, आशा और निराशा बस शेड हैं इसके, हम तो बस कुछ शब्द चुरा लेते हैं इससे, अपना बाना लेते हैं इसको।

Dr. Johnson C. Philip said...

समझने वाले के लिये इन पंक्तियों में बहुत कुछ है. शुक्रिया -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

Sharma ,Amit said...

Bhut Sunder Likha hai Sir...