27 July 2007

वो रास्ते

लोग मिलते हैं बिछड़ जाते हैं
कभी किसी बात पे बिगड़ जाते हैं,
पता भी नही चलता
और सालों बाद
ऐसे आते हैं
जैसे एक अजनबी।
शायद हम कहीं मिले थे।
बरसों से
एक ही शहर में रह रहे हैं,
वो रस्ते भी तय करते रहे हैं
जहाँ कभी साथ-साथ चला करते थे।
मै जब भी उन रास्तों पे
जाता हूँ आज,
अकेला नहीं होता,
पर वो रास्ते
जब भी मुझे अकेला देखते हैं
कहते हैं,
एक बार तो साथ आओ
तुम उसके,
अकेले अच्छे नही लगते...


10 comments:

Shastri JC Philip said...

"पर वो रास्ते
जब भी मुझे अकेला देखते हैं
कहते हैं,
एक बार तो साथ आओ
तुम उसके,
अकेले अच्छे नही लगते..."

सारथी पर आपकी कडी की मदद से यहां आया, एवं एक सशक्त कविता पढने का मौका मिला. ऊपर लिखी पंक्तियों ने कई कारणों से मन को झकझोर दिया -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।बधाई।

Reetesh Gupta said...

बहुत सुंदर ...अच्छा लगा पढ़कर ...बधाई

Udan Tashtari said...

वाकई, एक बहुत सशक्त कविता. बधाई.

Anonymous said...

एक बार तो साथ आओ
तुम उसके,
अकेले अच्छे नही लगते
हमारा अवचेतन वोही सुनता है जो हम चाहते हैं । समय है की उस रास्ते को हम बदल ले जो हमे उनकी याद दिलाते है ।
सुंदर भाव हैं पर क्या वह इन्टर नेट के रास्ते आकर इन भावो को महसूस करेगे ।

Sanjay Tiwari said...

बड़े दिनों बाद आपके दर्शन हुए यतीश बाबू.

सुनीता शानू said...

एक पल में ही अजनबी बन जाते है लोग,
यही एक सच्चाई है यतिश जी अच्छा लगा पढ़कर...

सुनीता(शानू)

Yatish Jain said...

शुक्रिया शास्त्री जी, रचना जी,समीर जी,
ये मन का इन्टर नेट हैं, मन की कोई सीमा नही होती और हर चीज के बदले कुछ मिले ये सही नही हैं। अवचेतन मन जो सुनता हैं वो कभी ना कभी सही होता हैं यह मेरा अपना अनुभव हैं। अगर मै ये सब नही करु तो मै ;मै नही रहूंगा। हर किसी की पहचान उसके नज़रिये बनती हैं। और रही बात उसके आने की तो वो आये या ना आये मुझे नही बदलना हैं। मै बदला तो बहुत कुछ बदल जाएगा...

mamta said...

शास्त्री जी के ब्लोग के जरिये हमने आपकी रचना पढी।

Admin said...

yathish
very moving poem
hindi me kaise type karten hain?