घर में कई किताबें
अपने बिछड़ो से
मिलने को तरस रहीं थी,
कुछ दिन पहले ही
एक एनाय्क्लोपीदीया
मुझसे कह रहा था
कहॉ छोड़ आये हो
मेरा एक हिस्सा,
जब तुम लाए थे मुझे
अपने घर,
तो कहा था
अगली बार
पूरा कर दूंगा तुम्हें ।
आज एक दशक से
ज्यादा हो गया।
कल किसी बहाने में गया था
उन रास्तों पे,
नये ज़माने की चमक से
चमक रही थी सारी चीजें,
बसों की भीड़ अब
मेट्रो में चलती हैं,
सेंट्रल पार्क को चिड़ाता
एक और पार्क बन गया हैं
और वो फेरी वाले
ना जाने कहॉ गुम हो गए,
जो सजाते थे
पुरानी सोहबतें।
जो बेचते थे
पुरानी किताबें...
6 comments:
बहुत सांकेतिक!!!
सुंदर रचना…।
सुंदर अच्छा लगा, बहुत सुंदर|
वाह, बहुत सुंदर रचना. नया रंग रुप चिट्ठे का बढ़िया है.
यही सब न झंझट है. अब पढने-लिखने का काम तो कम्प्यूटर पर हो जाता है! और फेरी वालों को सरकार ने तय कर लिया है कि जीने नहीं देगी.
पसन्द आयी रचना। ब्लोग का डिज़ाईन भी बहुत खूब है।
बहुत सुंदर!
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