http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2007/08/blog-post_06.html जो स्याही की सहायता से जीता है दूसरो पर कालिख उडेलता है अग्रेजी की कतरनों को हिंदी का जामा पहनता है यहाँ वहाँ से फोटो उठाता है मौलिकता के नाम पर अपने लिखे पर चिपकाता है शिक्षक हों कर गुरू की गरिमा को भूल जाता है जहाँ मतभेद ना हों भाषा से मतभेद लाता है अपनी गलती को ना स्वीकार कर सब पर शक करना ओर किसी के भी नाम के सहारे अपने फटे पुराने लेखो पर अपनो से चर्चा करवा कर स्याही की सहायता से जीता जाता है तभी तो अपनी बिना नाम की शख्सियत को मसिजीवी वह बताता है
कविता बहुत हृस्व हो गई. खुले हमाम में (समुद्र किनारे) नहाते लोगों के कपडों के समान. कम से कम हम सब को अपनी सटीक विश्लेषण की 8 से 10 पंक्ति जरूर प्रदान करें -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है http://www.Sarathi.info
आप की सोंच खरी है और बेबाकी भी… वाकई हम सभी हमाम में नंगे ही होते है… अगर कविता को और बढ़ाया जा सके तो कृप्या जरुर ऐसा करें हमें और भी कुछ जानने को मिलेगा…।
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http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2007/08/blog-post_06.html
जो स्याही की सहायता से जीता है
दूसरो पर कालिख उडेलता है
अग्रेजी की कतरनों को
हिंदी का जामा
पहनता है
यहाँ वहाँ से फोटो
उठाता है
मौलिकता के नाम पर
अपने लिखे पर चिपकाता है
शिक्षक हों कर
गुरू की गरिमा को
भूल जाता है
जहाँ मतभेद ना हों
भाषा से मतभेद लाता है
अपनी गलती को ना
स्वीकार कर सब पर
शक करना ओर
किसी के भी नाम
के सहारे
अपने
फटे पुराने
लेखो पर
अपनो से चर्चा
करवा कर
स्याही की सहायता से जीता
जाता है
तभी तो अपनी बिना नाम की
शख्सियत को
मसिजीवी
वह बताता है
कविता बहुत हृस्व हो गई. खुले हमाम में (समुद्र किनारे) नहाते लोगों के कपडों के समान. कम से कम हम सब को अपनी सटीक विश्लेषण की 8 से 10 पंक्ति जरूर प्रदान करें -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
आप की सोंच खरी है और बेबाकी भी…
वाकई हम सभी हमाम में नंगे ही होते है…
अगर कविता को और बढ़ाया जा सके तो
कृप्या जरुर ऐसा करें हमें और भी कुछ जानने को मिलेगा…।
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