कभी रिश्ते एसे हो जायेगे
जैसे किसी इमेल मे आयी हुई बेकार मेल
जो रोज आती है और अपने आप ही
चली जाती है जन्कमेल मे,
या अंगुलियां एक दम से
चली जाती डिलीट पे
सोचा नही था।
कभी मिले तो कहते थे
अमा याद भी करलिया करो,
अब याद करते है
तो कहते है तुम बिजी होगे
इसलिये तुमसे सम्पर्क नही किया,
कितने समझदार होते है ये
कहने वाले,
बिन कहे ही मेनेज करते हैं
अपनो का वक़्त,
इस तेज रफतार जिन्दगी मे
जहा फ्री टाकटइम वाले मोबाइल है
वीडियो टाक है,
ईमेल है
और नजाने कितने साधन
मेल मिलाप के,
विज्ञान ने अब
मीलो का फ़ासला
एक क्लिक की दूरी तक
सीमित कर दिया है.
पर
बहाने वही पुराने...
5 comments:
"बहाने वही पुराने..."
Sir, Science has decreased all the distances and i feel on the same note somewhere our emotions too.
आपने जंक ईमेल एवं बदलते संबंधों की क्षणिकता के बीच अच्छी तुलना की है.
कविता कम से कम इतनी लम्बी हो तो मजा आ जाता है. आपकी छोटी कवितायें अच्छी है, लेकिन उनको पढकर कई बार मन तृप्त नहीं होता है -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
आपने जंक ईमेल एवं बदलते संबंधों मे जो तुलना की है वह एक दम सही है.
कई बार आपकी लघु कवितायें पढ कर मन को तृप्ति नहीं होती है. लेकिन इस कविता की लम्बाई ठीक है
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
सच है, बहाने वही हैं.
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