कभी अजनबी सी,
कभी जानी पहचानी सी,
जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा...
18 August 2007
केचुली
नागपंचमी हैं, आज के दिन साँप को दूध पिलाया जाता हैं, सपेरों को पुराने कपड़े आदी दान किये जाते हैं, एसा देखा था बचपन में, पर आज सुबह से से इंतजार हैं कोई सपेरा नही आया।
सपोलो का शहर हैं ये शायद यहाँ लोग कपड़े नही केचुली बदलते हैं...
वाह क्या बात है सँपोलो का शहर बहुत अच्छा लिखा है...आस्तीन में बहुत से साँप इसी लिये तो पल जाते है वो केँचुली बदलते रहते है पता ही नही चलता कि दोस्त है या सँपोले...
5 comments:
nice
सही कहा है । जरा रुकिये हम तनिक केंचुली बदल कर आकर टिपियाते हैं ।
घुघूती बासूती
वाह क्या बात है सँपोलो का शहर बहुत अच्छा लिखा है...आस्तीन में बहुत से साँप इसी लिये तो पल जाते है वो केँचुली बदलते रहते है पता ही नही चलता कि दोस्त है या सँपोले...
सुनीता(शानू)
अह्हा!!! क्या बात कही है, वाह!
Yatish, somewhere down the line I feel this post of yours expose the society’s prevailing hypocrisy and moral weakness. keep it up!
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