उम्र के इस मध्यांतर मे, थोड़ा रुका; तो देखा कोई साथ नही था। सत्य है. कभी कभी ऐसा अनुभव होता है .... तो मन कह उठता है.... "अकेला ही चलना होगा जीवन-पथ पर अकेला ही बढ़ना होगा मृत्यु-पथ पर निराश न हो मन ।" अपनी लिखी पुरानी कविता के साथ साथ बहुत कुछ याद दिला दिया.
6 comments:
Good Thought Bhaiya. But let me remind you that you are not alone I am always with you.
Regards,
Rajat
यतिश जी आज मन कुछ अशांत है इसलीये किसी को टिप्पणी नही दे पाई हूँ आपके सिवा... यह कविता आज न जाने कुछ मुझे अपनी सी लग रही है...
सुनीता(शानू)
क्या हुआ भाई. आज बड़े खोये खोये से तन्हा तन्हा टाईप बात कर रहे हैं.
बहुत सुन्दर मन को छूने वाली कविता है ।
घुघूती बासूती
आप की कविता ने ह्रदय को स्पर्श किया है...बधाई
उम्र के इस मध्यांतर मे,
थोड़ा रुका;
तो देखा
कोई साथ नही था।
सत्य है. कभी कभी ऐसा अनुभव होता है ....
तो मन कह उठता है....
"अकेला ही चलना होगा जीवन-पथ पर
अकेला ही बढ़ना होगा मृत्यु-पथ पर
निराश न हो मन ।" अपनी लिखी पुरानी कविता के साथ साथ बहुत कुछ याद दिला दिया.
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