एक ईमेल ने कहा कि
मै हीं हूँ तुम्हरी कविता में
पुरानी यादों मे;
कुछ अच्छी यादों मे,
मै वहां हूँ।
चाहे स्म्रति दुखद हो
पर मै हूँ तुम्हारे साथ;
तुम्हारी कविता में ।
अपने आप को पा के
बहुत अच्छा लगता है।
भले ही कोई
न समझे कि तुम
किसके बारे मे लिख रहे हो,
इससे मै अच्छा मेहसूस करता हू,
अपना खयाल रखना
ई मेल का जबाव
ई मेल से देना।
आज मै
जिस मेल में बैठा हू
वो रेल है जिंदगी की
जिसमे रोज़ लोग चड़ते है
और उतर जाते है
अगले स्टेसन पे।
स्म्रतियाँ साथ रह जाती है,
लोग भूल जाते है
कि इस आधुनिक युग मे
आज़ हर चीज को
सामने लाया जा सकता है.
मुझे मेल लिखना नही आता
ना ही इसका शिस्टाचार,
ये जो लिखा है ये वाकये है
उस मेल के
जिसमे मै बैठा हूँ
और रोज़ करता हूँ
उन यादों का सामना
क़तरा-क़तरा...
7 comments:
bahut ghharai ki batt kehi hai aapne is Kavita main.
Rasa Kahan hain. Swaad kiddhar hain ?
Rajiv
शब्दों का आलंकारिक प्रयोग अच्छा लगा -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
kuch mail jo junk hotee hae
kitna bhi hatao
aatee hee hae
Indeed, very touchy poetry again. Well I suggest you to learn to board the badwagon of E-mail if you want to give extra boost to your relationships.
"ई मेल का जबाव
ई मेल से देना।"
पूरी कविता ही सुंदर है, एक असर छोड़ जाती है....एक आफ्टर टेस्ट।
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
और रोज़ करता हूँ
उन यादों का सामना
क़तरा-क़तरा...
क्या बात है बातों ही बातों मे सब कह डाला...
बहुत गहरे भाव छोड़ती है आपकी कवितायें..मगर कतरा-कतरा...
शानू
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