22 August 2007

विश्वास

जीवन का सबसे बडा झूठ क्या हैं,
क्या हैं जिसके आगे कुछ दिखाई नही देता,
क्या हैं जिसकी क़ैद मै हैं सत्य,
और सत्य तभी सामने आता हैं
जब टूटता हैं वह।

"विश्वास "

विश्वास सत्य नही;
सत्य हैं अनुभव,
विश्वास की सत्ता जहाँ ख़त्म होती हैं
वहां से शुरू होता हैं सत्य का अनुभव।
नई संभावनाओं के लिए विश्वास
सबसे बड़ी अड़चन हैं।

बग़ैर साक्ष हम
जिए चले जाते हैं विश्वास,
विश्वास कुछ और नही
विष का वास हैं
जिसे हम रोज़
इकट्ठा करते हैं
क़तरा-क़तरा ...

10 comments:

विपुल जैन said...

जनाब विश्वास है तो संगी हैं, संगी हैं तो दुनिया है, बाकी सब मिथया है। उम्मीद है मेरी टिप्पणि पास होगी।

Anonymous said...

विश्वास के बिना
जीना व्यर्थ है

Shastri JC Philip said...

कह जाते हैं
यतीश भी कई बार
उलटा पुलटा !
पकड लिया हमने उनको
इस बार!

सत्य के बिना होता है विश्वास
अंधा,
एवं विश्वास के बिना होता है सत्य
सिर्फ पाषाण !

ध्यान देना हमारी इस बात पर
जनाब,
वर्ना कर दोगे फिर से सब कुछ
कल उलटा पुलटा !

-- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

Anonymous said...

"बग़ैर साक्ष हम
जिए चले जाते हैं विश्वास"
साक्ष का मतलब ही सत्य है
शास्त्री जी का कहना-
"सत्य के बिना होता है विश्वास
अंधा"
एक ही बात है तरीका अलग है
यतीस जी आपका जवाब भी चाहेगे
आपने शब्दो को बहुत ही अच्छी तरह घुमाया है.
सीधी बात सीधी तरह से समझ भी नही आती है
यह सत्य है

Anonymous said...

"विश्वास कुछ और नही
विष का वास हैं "

ना फेलाओ प्रदुषण
यतीश
लेकर वि-श्वास

"विश्वास" मे ही है
विश्व की आस

परमजीत सिहँ बाली said...

आप की रचना में ओशो की वैचारिक झलक मिलती है।अच्छा प्रयास कर रहे हैं और गहरा उतरें ।

Yatish Jain said...

शुक्रिया,
विपुल जी, शास्त्री जी, रचना जी, प्रमोद जी, परमजीत जी

सत्य तो सत्य ही होता है उसे कोई सहारे की ज़रूरत नही होती, हा विश्वास-अविश्वास के झमेले उसे ढक जरुर लेते है

पर विश्वास हमेशा अपाहिज होता है सत्य के बिना, साक्ष के बिना, प्रमाण के बिना.

किसी भी विश्वास मे हमेशा विश्वासघात की गुंजाईश तब तक होती है जब तक उसमे साक्ष की उपस्थिती मजबूत नही होती .

एक प्रश्न -
जब विश्वास टूटता है तो क्या सामने आता है?
और किस वजह से सामने आता है?

जिस चीज के दर्शन बाद मे करने है उसे पहले ही करलो तो क्या हर्ज है

साक्ष की अनुपस्थिती में विश्वास झूठ के बराबर ही है मैं यही मानता हूँ.

अंत मे कवी यतीष कहिन-

अविश्वास पे विश्वास करो,
जिंदगी का विश्वास बखूबी पा लोगे ,
विश्वास; विश्वास के धागों से जुड़ता है,
समझले यतीष ये दिल्ली में नही मिलते.

Shashi Kant said...

विश्वास मे ही अमृत और विष छिपा हुआ है विश्वास मे ही श्रद्धा के फूल छिपे हुए होते है
टूटा तो विष का काम करता है !
बना रहा तो जीवन मे अमृत घोल देता हे !

Anonymous said...

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Anonymous said...

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