एक दिन एक विश्वास ने
अपने साथियों के साथ
आसमान की सैर की
एक सपने में।
कुछ दिन बाद
साथियों का सपना
हकीकत मै बदला
पर विश्वास
वही का वही रहा
आज भी वह
सपने में हैं
उसकी मेहनत
रंगलायी
पर दूसरो के लिए।
कारण एक था
साथियों के पास
विश्वास का
साक्ष था कि
वो संघर्ष करेगा।
पर विश्वास के पास
कोई साक्ष नही था
कि वो जो कर रहा हैं
वो उसे मिलेगा
इसलिये अर्से से
विश्वास एक भ्रम में जी रहा हैं
साक्ष सामने खड़ा हैं
मिलन नही कर रहा,
ठुकरा रहा हैं साक्षी को .
6 comments:
साक्ष देखन मैं जो चला,
पहुंचा वृहद शब्दकोश पर.
मतलब मिला "नींव"
या जपमाला.
अब लगा रहे हैं अनुमान,
विश्वास से कि,
यतीश या तो तलाश
रहे हैं अपनी
नींव,
या अपनी जपमाला !!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
शुक्रिया शास्त्री जी, आप ने तो मेरे मन की बात कह दी ''नींव''
बगैर नींव ईमारत नही बनती, अगर बनती है तो जल्द ही ढह जाती है. अब यह नींव चाहे विश्वास की हो या किसी रिश्ते की .
लगता है सही शब्द साक्ष नही साक्ष्य है आप से मदद चाहूँगा शास्त्री जी
उद्देश्य समझ आना चाहिए शब्द का क्या बदलते रहते है
SAKSH aap Hain aur SAKSHI aap ki Purani....
Kya aapne kabhi Suna Hai Ke
SAPNE Kabhi NA
HUVE APNE
Jaani, Sapno ke sahare jeevan nahin chalta. Khud he kuch karna parta hai.
I m enjoying your every Katra,
Zindagi Ko katra katra,
mat kar dena,
apni Kavita ke,
chakkar main...
Target yaad rakho aur Lage Raho Munnabhai...
साक्ष आजकल चलता नहीं है,
गडबड अर्थ हो जाता है
पाठकों के मन में.
बदल कर कर दें उसे
"नींव" तो टिक जायगी
आपकी कविता बेहतर
एक "आधार" पर
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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जरुरत नहीं होती है विश्वास को साक्ष की
जरुरत नहीं होती है
विश्वास को साक्ष की
साक्ष केवल विश्वास को
देता है एक धरातल
पर जब आप कहते हो
साक्षी
मुझे याद आती है
साक्षी तंवर की !!!!!!
जो बडे ही विश्वास से
चला रही है सालो से
कहानी घर घर की
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