25 August 2007

निबंध The Eassy

विश्वास एक शब्द है जिसका प्रयोग समस्त विश्व करता है,
अक्सर यह रोज़मर्रा के जीवन में प्रयोग किया जाता है,
एस शब्द को लोग कार्य शैली मे देते और लेते है,
मूलतः यह आपसी रिश्तों जैसे-
दोस्त, कुलीग, भाई-बहन, माता-पिता और
व्यापार मे प्रयोग होता है,

इतिहास कारों का मानना है कि द्वापर युग से ही
विश्वास के दो साथी है 'पात्र' और 'घाती'
'पात्र' बहुत ही वफादार किस्म का साथी है और
'घाती' बहुत ही खुरपाती किस्म का साथी है,
देखने में दोनों एक जैसे लगते है पर अक्सर यह
पात्र की कि वेशभूषा में घूमता है
विश्वास श्रापित है यह कभी भी अकेला नही होता
इसलिए इसे लोग विश्वासपात्र और विश्वशाघात
के नाम से जानते है.
विश्वासघाती को पहचानना बहुत ही मुश्किल कार्य है
यह दैनिक जीवन मे किसी भी रिश्ते के रूप मे आ सकता है.
आजकल यह व्यापार और नौकरी के क्षेत्र मे घुल मिल गया है,
हम सब भी विश्वास के साथी है पर कौन से
इसे जानना बहुत ही आसान है.
हम अपने ख़ुद के मुआइने के आधार पर
की आप ने कब कब किस किस के साथ झूठ बोला है,
कब कब किसी दूसरे या अपनों को इस्तेमाल किया है,
इस प्रयोग से हम ख़ुद ही जान जाते है की हम कौन है
पात्र या घाती
अब विश्वास के दोस्त बन अपने आप को

साथ जोड़ दिया जाता है.
तत्पश्चात ख़ुद ब ख़ुद अपनी असली पहचान सामने आ जाती है
की हम कौन है विश्वास+पात्र या विश्वास+घाती

चिट्ठा जगत के कुछ महानुभाओं के मतानुसार जैसे
शास्त्रीजी के शब्दों मे
"सत्य के बिना होता है विश्वास
अंधा,
एवं विश्वास के बिना होता है सत्य
सिर्फ पाषाण !"
रचना जी के शब्दों मे
"विश्वास के बिना जीना व्यर्थ है.
विश्वास मे ही है विश्व की आस"
विपुल जैन जी के अनुसार
"विश्वास है तो संगी हैं, संगी हैं तो दुनिया है,
बाकी सब मिथ्या है।"
शशिकांत जी के अनुसार
"विश्वास मे ही अमृत और विष छिपा हुआ है
विश्वास मे ही श्रद्धा के फूल छिपे हुए होते है
टूटा तो विष का काम करता है !
बना रहा तो जीवन मे अमृत घोल देता है."
यतीष जी के शब्दों में
प्रमाण, साक्ष्य, सत्य के बिना विश्वास
झूठ के सिवा कुछ नही है.
बग़ैर साक्ष हम
जिए चले जाते हैं विश्वास,
विश्वास कुछ और नही
विष का वास हैं
जिसे हम रोज़इकट्ठा करते हैं
क़तरा-क़तरा ...


और कुछ लोगो के अनुसार विश्वास
वि + श्वास से बना है,
वि माने negative, श्वास माने सांस ...

1 comment:

SURJEET said...

Oh wow what beautiful essay you wrote. I must admire your style of crafting a philosphical though in humour. Good going Yatish. Cheers and hope to see more!