हर रिश्ता एक बन्धन है,
हर बन्धन एक रिश्ता है,
जो रोज़ रिसता है.
कोई कहता है कि
रिश्तों के बन्धन
कच्चे धागों कि तरह होते है
इन्हें संभालना बहुत ही मुश्किल है
ये बहुत नाजुक है.
किसी ने इसमे प्रेम बाँधा
किसी ने नफरत
और तो और
किसी ने इन दोनों के बीच
पुल बांधा,
पर वक्त की आंधी
कुछ ऎसी आयी की
ये बन्धन झूला बन गए,
बीच का फासला
खाई बन गयी.
पर हाँ एक रिश्ता है
जो खुला होकर भी
बहुत बांधता है,
वो है मन का.
धागे तो बहुत बांधे है
आओ मन बांधे,
फिर रोज़ होगा उत्सव
विश्वास का प्रेम का,
त्यौहार मनबंधन का.
7 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुती!!
बढ़िया रचना.
कच्चे धागे के समान है
क्या रिश्ते ?
हर रिश्ता है कच्चे धागे के
समान,
चाहे हो वह रिश्ता प्रेम का
या द्वेष का.
धागे कम होंगे तो
वह रिश्ता होगा कमजोर.
धागे जब कई मिल जायें
तो रिश्ता होगा मजबूत.
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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बहुत सही व सुन्दर !
घुघूती बासूती
Bahut Sunder Baat Kahi Philip ji ne
Achcha Katra hai...
धागे कम होंगे तो
वह रिश्ता होगा कमजोर.
धागे जब कई मिल जायें
तो रिश्ता होगा मजबूत.
Aur woh ban Jaayega SUTRADHAAR
Woh Rishta Sabko Jod ke rakhega.
दुनिया में किसी रिश्ते का मतलब तब तक नही है जब तक आप उसे मन से ना स्वीकारे!
विश्वास का प्रेम का,
त्यौहार मनबंधन का.
बहुत सुन्दर प्रेममयी रचना...काश ऐसा हो जाए. बस मनबंधन के त्यौहार ही मनाए जाएँ ...
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