29 August 2007

ग्रहण

आज चाँद फिर आधा हो गया
आज फिर
एक रिश्ते को ग्रहण लगा
जो कभी देता था शीतलता
आज किसी की छाया मे आगया.

चाँद का ग्रहण तो हट जाएगा
कुछ देर में
पर रिश्ते का ग्रहण...

पिछली बार जो लगा था
अब तक नही हटा
और कितने लगेंगे
ग्रहण रिश्तों को

अब तो
रिश्ता सा हो गया है
ग्रहण से,
रोज़ लगता है
क़तरा-क़तरा

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने ।

anu said...

ज़िन्दगी यूं हुई बसर तन्हा , काफ़िला साथ और सफ़र तन्हा

Udan Tashtari said...

वाह भई, कतरा कतरा को सार्थक करती रचना.

Sharma ,Amit said...

सही ही है! अगर रिश्तों का धागा एक बार टूट जाए तो जुडता नही और जोड़े तो गाँठ पड़ जाती है!