आज चाँद फिर आधा हो गया
आज फिर
एक रिश्ते को ग्रहण लगा
जो कभी देता था शीतलता
आज किसी की छाया मे आगया.
चाँद का ग्रहण तो हट जाएगा
कुछ देर में
पर रिश्ते का ग्रहण...
पिछली बार जो लगा था
अब तक नही हटा
और कितने लगेंगे
ग्रहण रिश्तों को
अब तो
रिश्ता सा हो गया है
ग्रहण से,
रोज़ लगता है
क़तरा-क़तरा
4 comments:
बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने ।
ज़िन्दगी यूं हुई बसर तन्हा , काफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
वाह भई, कतरा कतरा को सार्थक करती रचना.
सही ही है! अगर रिश्तों का धागा एक बार टूट जाए तो जुडता नही और जोड़े तो गाँठ पड़ जाती है!
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