13 August 2007

नुमाइश
















यदा
-कदा लोग
पूछते हैं मुझसे
अरे वो कहॉ हैं
आज कल
जो रहता था
साथ तुम्हारे?

अतीत का पन्ना था
किसी ने फाड़ कर
जहाज बना
उड़ा दिया.
कल दिन भर
धूड़ा उसे
नही मिला,
शरहद पार गया
लौटा नही शायद।

आज
एक नुमाइश में
देखा था,
किसी का चेहरा
हू-बहू
वही था
पर
वह नही था...

5 comments:

Anonymous said...

har cherae mae chuopa hae ek aur chera
kabhie anjanao mae dikhta hae ek pehachan chaera
kabhie pechane cherae bhi ho jaatae hae anjane

सुनीता शानू said...

कल दिन भर
ढूँढा उसे
नही मिला,
सरहद पार गया
लौटा नही शायद।

कितना सच है इस बात में...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ती रही है आपकी हमेशा से ...कम शब्दों में आप सारी बात कह जाते हैं...

सुनीता(शानू)

Shastri JC Philip said...

"हू-बहू
वही था
पर
वह नही था..."

इस अनुभूति से होने वाले भावनाओं को वही जान सकता है जो इसको अनुभव कर चुका हो. कविता के लिये आभार -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है

Kavi Kulwant said...

बहुत खूब यतीश जी..सुंदर

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छी रचना. सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई.