10 July 2007

बिंदियाँ

ये बिंदियाँ भी कितनी
कमाल की चीज़ होती हैं
हरे रंग की, लाल रंग की,
नारंगी रंग की।
जब ये बैठी होती हैं
जीमेल बॉक्स के
लेफ्ट कार्नर में
तो ताकती रहती हैं।
कुछ हरी बिंदियाँ
रोज़ आती हैं,
अपने होने का
एहसास दिलाती हैं,
नारंगी कहती हैं
मै हूँ तो पर
अभी नहीं।
लाल होते हुये भी
अपनी व्यस्थता
बताती हैं,
और कई ग्रे बिंदियाँ
सुस्त सी पड़ी रहती हैं,
कौने में
सूखे पत्तों की तरह,
बेजान रिश्तों की तरह...

1 comment:

Anonymous said...

jinki bindi hae harii woh chal rahen haen
jinki bindi hae laal woh ruk gayen haen
jinki bindi hae narangii woh soch rahen hae