15 July 2007

नए मौसम

जब सूखे पत्तों पे बारिश की बूंद पड़ती हैं
तो शाख से टूट जता हैं,
छोड़ अपने कल की दास्ताँ।
सावन जब फिर शाख की रूह को छूता हैं
तो शुरू होती हैं नए पत्तों की तय्यारी
ये मौसम फिर सौधी खुशबू से महक उठता हैं

कुछ इसी तरह होती हैं आंसुओ की बारिश
एक सूखे गम को बहा ले जाती हैं
और ज़िंदगी फिर ले आती हैं
एक नया ग़म
एक नए मौसम के संग ...

1 comment:

सुनीता शानू said...

यतिश जी बहुत सुन्दर लिखते है आप कविता में यथार्थ का सफ़ल चित्रण कर पाते है आप...बहुत सही लिखा है आँसू भी गीले पत्तों के जैसे झर जाते है....


शानू