29 July 2007

सिग्नल

मै जब भी
उस रेड लाईट से गुज़रता हूँ
जहाँ मैंने कभी उससे कहा था
कि जब तू बड़ा आदमी हो जाएगा
एक बड़ी कार में
यहाँ से निकलेगा,
और मै इस जगह
रोड क्रोस करने के लिए
खड़ा होऊंगा
तो तू अपने ड्राइवर से बोलेगा
सिग्नल तोड़ दे
वो आ रहा हैं,
तुम हस पडे थे।

ये सिग्नल भी
कितने अजीब होते हैं दिल के,
लाख कोशिश करो
टूटते ही नहीं,
बस रंग बदलते रहते हैं...

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

2 comments:

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छा लगा पढ़कर! लिखते रहें।

सुनीता शानू said...

ये सिग्नल भी
कितने अजीब होते हैं दिल के,
लाख कोशिश करो
टूटते ही नहीं,
बस रंग बदलते रहते हैं...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ती विचारों की...:)

सुनीता(शानू)